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Snow Trek to Hanumangarh Peak (3070 m) | हनुमानगढ़ चोटी यात्रा (नवंबर 2018)

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हनुमानगढ़ पीक मेरा पहला विंटर ट्रैक था। आखिरी भी हो सकता था। कैरियर का? या शायद जीवन का ही? मालूम नहीं। बस इतना पता है कि आगे से मैं कभी सर्दियों में ट्रैकिंग नहीं करूँगा। 'भालू प्रोन एरिया' में तो बिल्कुल नहीं। यही मेरा न्यू ईयर रेसोल्यूशन है। इस ट्रैक की कहानी इतनी खौफ़नाक है कि इस पर "I Shouldn't be alive" का एक दमदार एपिसोड बन सकता है। जैसे एक मीटिंग मोदी जी किए थे बेयर ग्रिल्स के साथ, वैसे ही एक हम भी किए थे 'बेयर' के साथ। फ़र्क सिर्फ़ इतना सा है कि हमारी वाली मीटिंग ज़्यादा 'वाइल्ड' थी। इससे प हले मैं भालू से नहीं डरता था। भालू का खूब मज़ाक उड़ाता था। जो लोग मुझसे पूछते थे कि तुम्हें भालू से डर नहीं लगता उन्हें भालू से बचने की 'निन्जा टेक्नीक' सिखाया करता था। फिर एक दिन मैं इस ट्रैक पर गया। बस उस  दिन  रात से मुुुझे भालू से भोत डर लगता है।

Chowari Jot- Dainkund Hike - A Photo Journey | चुवाड़ी जोत- डैनकुण्ड यात्रा (2018)

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समय-  सुबह 11:30 बजे स्थान- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, चम्बा किसी जिला स्तरीय मेले की कुश्ती प्रतियोगिता में 'बड़ी माली' देखने आए लोगों जितना बड़ा झुण्ड, जो SBI चम्बा ब्रांच में हर काउंटर के आगे आदि काल से लगता आया है, आज भी लगा है। हर काउंटर के आगे लोग कतार की जगह झुंड बना कर भिड़ रहे  खड़े हैं। जिस देश में लोगों का आधा जीवन इसी झुण्ड में दंगल लड़ने में बीत जाता हो, उस देश का कुश्ती और कबड्डी में बेहतरीन प्रदर्शन स्वाभाविक है। खैर 2-3 झुण्डों के बीचोंबीच घुसते हुए हम रोकड़ा अधिकारी के टेबल पर पहुंचते हैं। रोकड़ा अधिकारी का कहना है कि आजकल बैंक आने की ज़रूरत नहीं पड़ती। मेरा बेटा 'चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी' में पढ़ता है, घर बैठे फ़ीस जमा करवाता है। छोटे भाई की फ़ीस जमा करवाने मैं (तीसरा सेमेस्टर) तीसरी बार आया हूँ और ये 'चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी' वाली स्पीच मैं तीसरी बार सुन रहा हूँ। चम्बा जोत  तभी बैंक में बिजली गुल्ल हो जाती है और लो आज तो बैंक वालों के जनरेटर का डीजल भी खत्म है। सामने के टेबल पर बैठा कर्मचारी अपने चाइनीज़ फ़ोन की टॉर्च से काम चालू रख बेहतरीन जुझारू

Exploring the Past: A Visit to Rehlu Fort | इतिहास के झरोखों से - रेहलू किला

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पठानकोट - मण्डी राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक छोटा सा कस्बा है शाहपुर। शाहपुर से बाईं ओर  9  किलोमीटर लम्बा शाहपुर- चम्बी सम्पर्क मार्ग आसपास के अनेक गांवों को कनेक्टिविटी प्रदान करते हुए राजमार्ग से जोड़ता है। इसी लिंक रोड़ पर  4  किलोमीटर आगे रेहलू गाँव स्थित है। आज गुमनामी के अंधेरे में खोए रिहलू गांव का हिमाचल के इतिहास में विशेष स्थान रहा  है। रिहलू से लगभग 300 फ़ीट की ऊंचाई पर एक रिज पर स्थित है रिहलू का प्राचीन किला। आज खण्डहर में तब्दील हो चुके रिहलू के किले का इतिहास बेहद रोचक रहा है। वर्तमान में जिला काँगड़ा का भाग रेहलू अतीत में तत्कालीन चम्बा रियासत का हिस्सा हुआ करता था। क्षतिग्रस्त दुर्ग 

Kalah Pass Trek | मणिमहेश कैलाश यात्रा वाया कलाह जोत (2017) | भाग- II

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  मणिमहेश कैलाश यात्रा वाया कलाह जोत जारी है।  भाग  1 से आगे -  तभी एक आवाज़ सुनाई पड़ती है, "मैंने आपको शायद कहीं देखा है।" पीछे मुड़ने पर देखता हूँ कि  33-34 साल के एक सज्जन मुझे बड़े गौर से एकटक देख रहे हैं। जैसे पहचानने की पुरजोर कोशिश कर रहे हों। मुझे भी शक्ल जानी पहचानी लगती है। तभी कैसेट 15 महीने पीछे घूमती है और मैं पूछता हूँ,  "क्या आप सोनू भाई हैं?" जबाब हां में मिलता है।

Kalah Pass Trek | मणिमहेश कैलाश यात्रा वाया कलाह जोत (2017) | भाग- I

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इंजीनियरिंग की एक किताब है "अ कोर्स इन इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक मेजरमेंटस एंड इंस्ट्रुमेंटेशन" के नाम से। 1500 पन्नों की ये किताब भावी इंजीनियरों के लिए किसी बाइबल से कम नहीं है। 5 दशक पुरानी इस किताब के लेखक का अब निधन हो चुका है लेकिन अभी भी इतनी ज़बरदस्त सेल है कि उनका सुपुत्र आज दिन तक किताब की रॉयल्टी के चेक बटोर रहा है। अपनी इंस्ट्रुमेंटेशन इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दिनों में कई सेमेस्टरों में नैय्या पार लगाने का श्रेय इसी महान किताब को जाता है जिसे अपन लोग उस जमाने में 'मदर-बुक' कहा करते थे। किताब की एहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गर्मियों में हफ़्ता भर न नहाने वाले लड़के लोग भी सुबह शाम इस किताब को धूप-अगरबत्ती किया करते थे। ठीक ऐसा ही रुतबा हिमाचल की ट्रेकिंग फ्रेटर्निटी में  www.tarungoel.in वेबसाइट का है। वेबसाइट नहीं ज्ञान का भंडार है जो मेरे जैसे नौसिखिए ट्रैकरों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। संक्षेप में अगर इस वेबसाइट को "हिमाचल में ट्रेक्किंग की बाईबल" कहा जाए तो गलत नहीं होगा। मेरी आज तक की लगभग सभी यात्राएं तरुण

Jalsu Pass Trek | जालसू जोत यात्रा (2016) | भाग- II

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जालसू जोत यात्रा (2016) | भाग- I  में आपने पढ़ा की कैसे हम भीगते हुए प्रेईं गोठ तक पहुँचते हैं जो आज रात हमारा ठिकाना होगा। अब आगे- हम दोनों को मिला कर डेरे में कुल 5 लोग हैं। बीमार पिताजी, उनकी धर्म पत्नी व एक अन्य मुसाफिर। कुकिंग का जिम्मा अंकल का है जो मिट्टी के तेल के लैंप की रौशनी में रात का खाना बना रहे हैं। आंटी सिर्फ़ मोरल सपोर्ट के लिए मौजूद हैं। चूल्हे के पास बैठ कर 'चाय पर चर्चा' शुरू होती है। मुद्दा है - सूबे की राजनीति। हम दोनों ही गद्दी भाषा समझने में असमर्थ हैं इसलिए सब-टाइटल्स से काम चल रहे हैं। अपने पल्ले सिर्फ इतना पड़ रहा है की तत्कालीन माननीय वन मंत्री जी के काण्ड  किस्से धौलाधार के इस तरफ़ भी उतने ही मशहूर हैं जितने की चम्बा वाली तरफ़।

Jalsu Pass Trek | जालसू जोत यात्रा (2016) | भाग- I

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गर्मी पड़ना शुरू हो गई है। साल की शुरुआत किस ट्रेक से की जाये? इंद्रहार जोत चलते हैं। इंद्रहार? वो भी अप्रैल-मई में? हाँ क्यों नहीं।  बात मार्च 2016 की है। इन दिनों बद्दी में पारा चढ़ना शुरू हो जाता है। साल का आगाज़ कहाँ से किया जाए इस पर मैं और मेरा घुम्मकड़ मित्र नितिन शर्मा कॉलेज में सोच-विचार कर रहे थे। इंद्रहार जोत (4342 मीटर) को पार करने का ख़्वाब नितिन ने उन दिनों से पाल रखा है जब हम पॉलीटेकनिक कॉलेज काँगड़ा में अध्ययनरत थे। एक बार तो जोश जोश में ये बोलते हुए भी सुना था की किसी दिन इंद्रहार पास के टॉप पर साइकिल पहुंचा कर ही दम लूंगा।