Chowari Jot- Dainkund Hike - A Photo Journey | चुवाड़ी जोत- डैनकुण्ड यात्रा (2018)
समय- सुबह 11:30 बजे
स्थान- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, चम्बा
किसी जिला स्तरीय मेले की कुश्ती प्रतियोगिता में 'बड़ी माली' देखने आए लोगों जितना बड़ा झुण्ड, जो SBI चम्बा ब्रांच में हर काउंटर के आगे आदि काल से लगता आया है, आज भी लगा है।
हर काउंटर के आगे लोग कतार की जगह झुंड बना करभिड़ रहे खड़े हैं। जिस देश में लोगों का आधा जीवन इसी झुण्ड में दंगल लड़ने में बीत जाता हो, उस देश का कुश्ती और कबड्डी में बेहतरीन प्रदर्शन स्वाभाविक है।
खैर 2-3 झुण्डों के बीचोंबीच घुसते हुए हम रोकड़ा अधिकारी के टेबल पर पहुंचते हैं।
हर काउंटर के आगे लोग कतार की जगह झुंड बना कर
खैर 2-3 झुण्डों के बीचोंबीच घुसते हुए हम रोकड़ा अधिकारी के टेबल पर पहुंचते हैं।
रोकड़ा अधिकारी का कहना है कि आजकल बैंक आने की ज़रूरत नहीं पड़ती। मेरा बेटा 'चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी' में पढ़ता है, घर बैठे फ़ीस जमा करवाता है। छोटे भाई की फ़ीस जमा करवाने मैं (तीसरा सेमेस्टर) तीसरी बार आया हूँ और ये 'चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी' वाली स्पीच मैं तीसरी बार सुन रहा हूँ।
चम्बा जोत |
तभी बैंक में बिजली गुल्ल हो जाती है और लो आज तो बैंक वालों के जनरेटर का डीजल भी खत्म है। सामने के टेबल पर बैठा कर्मचारी अपने चाइनीज़ फ़ोन की टॉर्च से काम चालू रख बेहतरीन जुझारूपन का परिचय देते हुए काम निपटा देता है।
पीछे दो लड़कियां आपस में बात कर रही हैं की कल और परसों सारे चम्बा में बिजली गुल्ल रहेगी। ऐसा सुनते ही मेरे जनरेटर का डीज़ल ख़त्म हो जाता है।
"अब दो दिन क्या करूंगा? अब तो पिछले हफ़्ते मंगवाई नई किताब 'सबसे ऊंचा पहाड़' भी पढ़ के खत्म कर दी। चम्बा की गर्मी आजकल बद्दी को टक्कर दे रही है, इस भयानक गर्मी में बिना बिजली के 2 दिन कैसे कटेंगे?"
एस्केप रूट मिलता है तरुण गोयल साहब की 2018 की अमेज़न बेस्टसेलर किताब 'सबसे ऊंचा पहाड़' से।
बैंक से घर पहुँच कर एक बार फ़िर किताब के पन्ने टटोले जाते हैं और प्लान बनता है चुवाड़ी जोत से डैनकुण्ड की यात्रा का।
बैंक से घर पहुँच कर एक बार फ़िर किताब के पन्ने टटोले जाते हैं और प्लान बनता है चुवाड़ी जोत से डैनकुण्ड की यात्रा का।
ग़दर फ़िल्म का एक दृश्य ठीक इसी जगह फ़िल्माया गया है |
अगली सुबह मैं चम्बा-धर्मपुर बस में अकेला निकलता हूँ। जोत में भयानक धुन्ध पड़ी है जैसे कोई आइसक्रीम का फ़्रिज खुला छोड़ के बन्द करना भूल गया हो। इतनी धुन्ध में मेरी कुल्फ़ी जमने की प्रबल संभावना है। मैं फ्लीस की जगह टी-शर्ट पहनने पर खुद को कोसते हुए दो चॉकलेट खरीदता हूँ और इसी के साथ मेरी दांडी यात्रा ठीक सुबह 9 बजे शुरू होती है।
न तो मेरे पास ठंड से बचने का जुगाड़ है और न ही भालू से बचने का। ख्याली मॉक-ड्रिल में मैंने भालू को स्प्रिंट मार के पीछे छोड़ दिया है। (इट फ़ील्स सो गुड टू बीट अ ब्लडी भालू!)
एयरफ़ोर्स स्टेशन डलहौज़ी - रडार स्टेशन |
स्वर्ग का द्वार |
मेरा इनिशियल प्लान मणिमहेश कैलाश और पीर पँजाल के फोटो लेने का था जो धुंध की वजह से चौपट हो चुका है। बादलों और धुन्ध का कॉम्बो मेरे फ़ोटोग्राफ़र बनने के सपने को ध्वस्त कर देता है। वापसी में पक्का कोशिश करूँगा ऐसा प्रण ले कर आगे बढ़ता हूँ। ये प्रण अतीत में लिए गए 'अगले सेमेस्टर से पक्का पढ़ूँगा' जैसे n नम्बर ऑफ प्रणों की कड़ी में जुड़ा n+1 प्रण है।
पिछले कुछ सालों से जोत चम्बा-नूरपुर और आसपास के लोगों के लिए नया वीकेंड गेटअवे बन के उभरा है। इसका प्रमाण जोत पर फैले कूड़े के पहाड़ हैं। बीयर के खाली कैन, शराब की टूटी बोतलें, चिप्स के खाली पैकेटों के ढेर आज भी किसी क्लीनअप ड्राइव की आस में वहीं पड़े पिरामिड का रूप धारण कर रहे हैं। रिस्पांसिबल टूरिज्म प्रैक्टिस करने जितनी रिस्पांसिबिलिटी यहां आने वाले टूरिस्ट उठाएंगे, उनसे इस बात की उम्मीद करना बेमानी होगी।
मॉडर्न ज़माने के लैला मजनू अपने मॉडर्न प्रेम की अमिट छाप छोड़ते हुए |
6 किलोमीटर लम्बा रिज चुवाड़ी जोत को डैनकुण्ड से जोड़ता है। रास्ते में आसपास के गांवों के इक्कादुक्का लोग ही मिलते हैं। पोहलानी माता जाने वाले अधिक्तर लोग वाया डलहौज़ी हो के जाना पसंद करते हैं। या फिर जोत से भी पोहलानी माता पहुंचा जा सकता है ये ज़्यादा लोगों को मालूम नहीं है, इस ट्रेल पर आवाजाही न होने का एक कारण ये भी हो सकता है।
गुज्जर का कोठा |
गाय-भैंसे चरा रहा एक लड़का मुझे इस ट्रैक पर अकेला देख कर हैरान-परेशान है।
लड़का मुझसे पूछता है, कहाँ जा रहे हो?
मेरा कहना है, पोहलानी माता।
उसका पूछना है, क्यों? आज कोई जातर है क्या?
मेरा कहना है, नहीं पॉवर कट है।
लड़का सिर खुजाता है। मैं आगे मार्च करता हूँ।
द्व्न्द युद्ध लड़ने वाला योद्धा |
रास्ते में गुज्जरों के कोठे हैं। 2017 नवंबर में परिवार के साथ इसी ट्रेक पर आना हुआ था। सर्दियों में वीरान पड़े इन कोठों में इन दिनों ज़बरदस्त चहल-पहल है। एक कोठे के बाहर एक बकरी और भैंसे का द्वंद युद्ध चल रहा है। बकरी स्मार्ट है और मैं ओवर स्मार्ट। मुझे पास आता देख बकरी भैंसे को छोड़ मुझे wwe का रेफ़री समझ स्पीयर मारने की फ़िराक में 2 कदम पीछे लेती है। बड़ी मुश्किल से भाग कर प्राण बचाता हूँ।
सुबह ठीक 10:40 पर मंदिर पहुँचना होता है।
पोहलानी माता मंदिर - पहली झलक |
पोहलानी माता का बिना छत का मंदिर |
डैनकुण्ड- डलहौज़ी की सबसे ऊंची चोटी |
पोहलानी माता के मंदिर में ठीक शिकारी देवी मंदिर की तरह छत नहीं है। सुबह का समय है इसलिए मंदिर में भीड़ भी नहीं है। अभी सारा दिन बचा है। वापसी वाया जोत से न कर के वाया लक्क्ड़मण्डी - खज्जियार की जा सकती है। प्रस्ताव ढाबे वाले को बताता हूँ जिसे वो पूरे समर्थन के साथ पारित करता है। अरविन्द केजरीवाल की तरह पलटी मारते हुए 2 घण्टे पहले लिया प्रण भुला कर ढाबे वाले से बस का टाइम पूछता हूँ और उतरना शुरू करता हूँ।
भारत में जनसंख्या विस्फोट की समस्या कितना विकराल रूप धारण कर चुकी है इसका एहसास मुझे मन्दिर से नीचे उतरते हुए होता है जब मेरी नज़र डैनकुण्ड की ओर आ रहे हजारों टूरिस्टों पर पड़ती है।
शॉर्टकट से पैदल लक्क्ड़-मण्डी आधे घंटे से भी कम में पंहुचा जा सकता है। लक्क्ड़मण्डी से चम्बा के लिए बस 3.30 पर मिलेगी। सामने कालाटोप वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी का बैरियर है। बस आने तक कालाटॉप घूम कर टाइमपास किया जा सकता है, ऐसा सोच कर अंदर चला जाता हूँ। पैदल आने जाने वाले घुमक्कड़ मुफ़्त जा सकते हैं। बैरियर पर एक पुलिस वाला गाड़ी की 200 रुपए की पर्ची कटवाने का इच्छुक नहीं है। कहता है पुलिस महकमे की कहीं पर्ची नहीं कटती। पुलिस पर्ची सिर्फ काटती है, कटवाती नहीं।
एक गाड़ी मण्डी से आई है जिसके ड्राइवर और फॉरेस्ट गार्ड के बीच wwe रेसलिंग किसी भी क्षण शुरू हो सकती है। विवाद का विषय पर्ची का रेट सुन कर मण्डियाली ड्राइवर के मुँह से निकले मार्मिक शब्द "माचो" हैं। गार्ड का कहना है गाली कैसे दी बे? ड्राइवर कन्विन्स करने की पुरज़ोर कोशिश करता है। उसका कहना है, 'माचो इज़ नॉट अ गाली, माचो इज़ एन इमोशन।'
कालाटॉप में लिए कुछ फोटो नीचे चिपकाए गए हैं।
कालाटॉप |
कालाटॉप वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी |
मशरूम |
कोबरा लिली |
खज्जियार- डलहौजी में पंजाबी टूरिस्ट सैंकड़ों मीट्रिक टन की मात्रा में मौजूद हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि पंजाब वालों ने पंजाब पुनर्गठन एक्ट, 1966 में खोई जमीन का बदला लेने के लिए सिस्टेमैटिक तरीके से कॉलोनाइज़ेशन शुरू कर दी है। त्रियुण्ड, कसौल और डलहौजी में पहला चरण चल रहा है।
दूसरा चरण रोहतांग सुरंग खुलने के बाद चालू होगा।
3.30 के आसपास लक्क्ड़मण्डी से चम्बा के लिए बस मिलती है। चम्बा पहुँच कर शहर की हवा में एक 'मोमेंटरी बदलाव' महसूस करता हूँ। बिजली प्रोजेक्टों के दुष्प्रभाव बताने वाले और एनएचपीसी को आए दिन गाली देने वाले लोग आज बिजली के अभाव में त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहे हैं। उन्हें देख कर मुस्कुराता हूँ और उनके डबल-स्टैंडर्ड्स को शत शत नमन कर अपने घर की ओर चल देता हूँ। इसी के साथ छोटी लेकिन रोमांचक यात्रा सम्पन्न होती है।
नोट- 'भालू प्रोन एरिया' में सोलो ट्रेकिंग घातक सिद्ध हो सकती है। समाज के बहकावे में न आएं। सतर्क रहें, सुरक्षित रहें, जय हिंद।
यात्रा का लाइव जीपीएस से रिकॉर्ड किया गया वीडियो यहां देखा जा सकता है।
वैसे अब ऑनलाइन बैंकिंग के जमाने मे sbi में लाइन लगाने की जरूरत नही है अब..आपका फोटो देखकर ग़दर फ़िल्म का सीन याद आ रहा है...यह फ़िल्म शूटिंग वाला पॉइंट शायद रोड के सामने ही है ट्रेक पे शुरुआत में ही शायद..वाह ख्याली मॉक ड्रिल में भालू का शिकार....हाहाहा न+1 प्रण...आज क्या जातर है नही आज पावर कट है बेहतरीन चुटीला लेखन अंदाज़...खज्जियार- डलहौजी में पंजाबी टूरिस्ट सैंकड़ों मीट्रिक टन की मात्रा में मौजूद हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि पंजाब वालों ने पंजाब पुनर्गठन एक्ट, 1966 में खोई जमीन का बदला लेने के लिए सिस्टेमैटिक तरीके से कॉलोनाइज़ेशन शुरू कर दी है। त्रियुण्ड, कसौल और डलहौजी में पहला चरण चल रहा है।
ReplyDeleteदूसरा चरण रोहतांग सुरंग खुलने के बाद चालू होगा।
ग़ज़ब का अंदाज़ है भाई आपके लिखने का....शानदार लेख और जगह तो है ही खूबसूरत...
ऐसी अनेक यात्राएं / यातनाये हर किसी को मिले बिजली का कट रोज लगे और आप रोज ऐसे ही निकल जाओ जय चम्बा
ReplyDeleteजय हिमाचल
बहुत दिलचस्प लेखन स्टाईल है... मजा आ गया.. अच्छे लेखक बनने के सब गुण हैं
ReplyDeleteGood bro keep it up
Deleteपोहलानी माता Shikari Mata ki Sister to nahi hai?
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