Snow Trek to Hanumangarh Peak (3070 m) | हनुमानगढ़ चोटी यात्रा (नवंबर 2018)
हनुमानगढ़ पीक मेरा पहला विंटर ट्रैक था। आखिरी भी हो सकता था। कैरियर का? या शायद जीवन का ही? मालूम नहीं। बस इतना पता है कि आगे से मैं कभी सर्दियों में ट्रैकिंग नहीं करूँगा। 'भालू प्रोन एरिया' में तो बिल्कुल नहीं। यही मेरा न्यू ईयर रेसोल्यूशन है।
इस ट्रैक की कहानी इतनी खौफ़नाक है कि इस पर "I Shouldn't be alive" का एक दमदार एपिसोड बन सकता है। जैसे एक मीटिंग मोदी जी किए थे बेयर ग्रिल्स के साथ, वैसे ही एक हम भी किए थे 'बेयर' के साथ। फ़र्क सिर्फ़ इतना सा है कि हमारी वाली मीटिंग ज़्यादा 'वाइल्ड' थी।
इससे पहले मैं भालू से नहीं डरता था। भालू का खूब मज़ाक उड़ाता था। जो लोग मुझसे पूछते थे कि तुम्हें भालू से डर नहीं लगता उन्हें भालू से बचने की 'निन्जा टेक्नीक' सिखाया करता था। फिर एक दिन मैं इस ट्रैक पर गया। बस उसदिन रात से मुुुझे भालू से भोत डर लगता है।
दरअसल मैं कभी सर्दियों में ट्रैकिंग नहीं करता हूँ। अपनी रड़काटी की दुकान का शटर हर साल अक्टूबर में गिरा दिया करता हूँ। कम्फर्ट ज़ोन से बाहर जाने का डिस्कम्फर्ट मैं सर्दियों में उठाने के पक्ष में कभी नहीं रहा। विंटर ट्रैक मुझे दो वजह से करना पसन्द नहीं है- पहली हड्डियां गला देने वाली ठंड और दूसरा जंगली जानवर। सर्दियों में बर्फ गिरने पर जंगली जानवर नीचे उतर आते हैं, इसलिए उनसे एनकाउंटर का खतरा बढ़ जाता है। दूसरा मेरी बूढ़ी हड्डियों को बर्फ़ में चलने से सख़्त परहेज़ है।
लेकिन इस साल (नवम्बर 2018 में) मामला संगीन है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लड़का लोग बर्नआउट का शिकार हो चुके हैं। तो अपने को एग्जाम के तुरन्त बाद एक 'रोमैंटिक वैकेशन' मांगता है।
मुझ जैसे पहाड़ प्रेमी के लिए आइडियल रोमैंटिक वैकेशन का सिर्फ एक ही मतलब हो सकता है- ट्रैक। पहाड़ों से मुझे ऐसी बेपनाह मोहब्बत है जैसी धड़कन फ़िलिम में सुनील शेट्टी को शिल्पा शेट्टी से थी। माने टोटल ज़हर।
पर जाएं तो जाएं कहाँ? इस 'मिलियन डॉलर क्वेश्चन' का उत्तर ढूंढना उतना ही मुश्किल है जितना कांग्रेस पार्टी में किसी गैर गांधी-वाड्रा का अध्यक्ष बनना। नवंबर खत्म होने को है और बर्फ़ 3000 मीटर तक उतर आई है। धौलाधार के सभी बड़े ट्रैक बर्फ़बारी के चलते बन्द हो चुके हैं। बड़ी दुविधा है।
तभी इस संगीन सीन में एंट्री होती है मेरे पुराने ट्रैक पार्टनर निशान्त भाई की। निशांत भाई को कांगड़ा धौलाधार में ट्रेल ट्रेसिंग और सोलो ट्रेकिंग में महारत हासिल है। वही हनुमानगढ़ पीक का नाम सुझाते हैं। मुझे कोई आपत्ति नहीं है। भला होगी भी क्यों? अपने को तो जीवन में थ्रिल चाहिए। इसलिए प्लानिंग कमीशन के दफ्तर से इस प्रस्ताव की फाइल झट से पास कर दी जाती है।
हनुमानगढ़ चोटी (3070 मीटर) हिमाचल के विश्व प्रसिद्ध पैराग्लाइडिंग साइट बिलिंग के पास स्थित है। बिलिंग से ही इस चोटी का ट्रैक शुरू होता है जो छिना पास से हो कर गुज़रता है। छिना पास विश्वप्रसिद्ध टूरिस्ट स्पॉट बिलिंग को छोटा बंगाहल घाटी से जोड़ता है।
नवम्बर 18 को एग्जाम है। 19 सुबह की चम्बा- बैजनाथ बस है। 20 सुबह बीड़ से चढ़ाई शुरू होगी। मास्टर प्लान तैयार है!
19 की सुबह बस पकड़ने के साथ ही ऑपरेशन शुरू होता है। किराया बढ़ोतरी के बाद ये मेरी पहली बस यात्रा है। 2010 में चम्बा से कांगड़ा के 150 लगते थे, 2018 में 300 लगते हैं। क्या इन 8 सालों में लोगों की आय भी दोगुनी हुई होगी? ये जानने के लिए सरकार कमीशन बिठाएगी और जब तक कमीशन की रिपोर्ट आएगी तब तक किराया 600 का आंकड़ा पार कर गया होगा।
नोट: आज 2020 में प्रदेश सरकार एक बार फिर बस किराए में बढ़ोतरी कर चुकी है। अब प्रदेश में बस और हवाई जहाज़ के किराए में उन्नीस बीस का ही अंतर रह गया है।
एनीवे,
बस में चम्बा से बैजनाथ सिंगल पीस में पहुंचने वाली सवारियों को अड्डा इंचार्ज के दफ़्तर में ही अशोक चक्र से सम्मानित किए जाने का प्रावधान होना चाहिए, ऐसा मेरा सुझाव है।
20 नवम्बर: संघर्ष का दिन
20 की सुबह मौसम साफ़ है। मतलब बारिश से मैच में खलल पड़ने के आसार कम हैं। जहां एक तरफ वक़्त के पाबंद निशांत भाई हमेशा की तरह ठीक टाइम पर बैजनाथ बस अड्डे पहुंच कर मेरा इंतज़ार कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ मैं कॉलेज के दिनों से दूसरे लेक्चर में क्लास में पहुंचने की प्रथा का बखूबी अनुसरण करता हुआ एक घण्टा देरी से पहुंचता हूँ। वहां से बीड़ की बस पकड़ हम चल देते हैं।
क्योंकि ट्रेक छोटा है इसलिए ट्रेक पार्टनर का कहना है कि बीड़ से बिलिंग शॉर्टकट से पैदल चलेंगे। । चलो इसे लम्बा बनाते हैं। स्मॉल मिलाते जाओ, लार्ज बनाते जाओ। इस मोटो को मेरा पूर्ण समर्थन प्राप्त है। क्योंकि अपने को जीवन में थ्रिल चाहिए।
बिलिंग के लिए चढ़ाई शुरू करते- करते 11 बज चुके हैं। सुहानी धूप खिली है और जहां तक नज़र जा रही है वहां आसमान की ऊंचाईयों में उड़ते रंग बिरंगे ग्लाइडर्स दिखाई पड़ रहे हैं।
इस यात्रा के लिए हमारा डिप्लॉयमेंट इतने शॉर्ट नोटिस पर हुआ है कि अपन लोग नमक, चीनी और कपूर की गोलियां तक लाना भूल गए हैं। खाना कैसे बनाएंगे, आग कैसे जलाएंगे सब सस्पेंस है।
लेकिन जीवन में अगर अनुराग कश्यप की फिल्मों के माफ़िक सस्पेंस और थ्रिल न हो तो वो भी कोई जीवन है भला?
बिलिंग में पी.बी. 12 नम्बर की गाड़ी से आए लड़का लोग के साथ घूमने आईं लड़कियां ठेके का पता पूछने के लिए लड़कों को उकसा रही हैं। बहकावे में आए लड़के अंग्रेजी शराब ढूंढ़ रहे हैं। पर अफ़सोस लडकों को ठेका नहीं मिल रहा और हमें कहीं नमक और चीनी नहीं मिल रही।
सबकी अपनी अपनी समस्याएं! सबकी अपनी अपनी दुविधाएं! जीना इसी का नाम है।
हम लोग एक ढाबे में लन्च करते हैं और उसी नेेेक दरियादिल ढाबे वालेे से थोड़ी चीनी और नमक ले कर आगे की चढ़ाई शुरू करते हैं। बिलिंग से एक लोकल कुत्ता हमारे पीछे- पीछे चलना शुरू कर देता है।
बिलिंग से राजगंधा तक मोटरेबल सड़क बनी है। इसी सड़क से हो कर हमें भी जाना है। लेकिन बरसात के बाद जैसी सड़क की हालत हो रखी है, सेना के टैंक का भी सड़क पार कर पाना मुश्किल है। कहीं मलबा पड़ा है, कहीं भूस्खलन हुआ है। कहीं गिरे हुए पेड़ों ने मार्ग अवरुद्ध किया है तो कहीं कहीं बीच की सड़क ही गायब है।
बीच कहीं किसी नाले से एक शॉर्टकट पीक के लिए जाता है। लेकिन सूरज ढलने को है और न तो ट्रेक पाटर्नर आष्वस्त है और न ही रिस्क उठाने की मेरी कोई इच्छा है। तो छिना जोत के आसपास ही कहीं कैंप करने का फैसला करते हैं।
ये तारीख मुझे ताउम्र याद रहेगी। क्योंकि ये मेरे जीवन की सबसे खौफनाक रात थी। सनसेट से पहले ही हम अपने आज के गंतव्य तक पहुंच गए हैं। चूँकि सर्दियों में अंधेरा जल्दी हो जाता है, इसलिए हम जल्दी से टेंट लगा कर लकड़ियां इक्कठी करते हैं और आग जलाने का कार्यक्रम शुरू करते हैं। तभी निशांत भाई को सामने भालू दिखाई देता है जो मेरे देखने से पहले ही जंगल की तरफ भाग जाता है।
अब हमारे कैंप में ठीक वैसा ही डर का माहौल है जैसा अशोक गहलोत कैंप में पिछले एक महीने से चल रिया था।
नवम्बर की सर्द अंधेरी रात, छिना पास (बिलिंग से राजगुंधा) के ऊपर का मैदान। सामने बियावान जंगल है जहां हमारे कैम्प से 150 मीटर दूर एक भालू मंडरा रहा है। अबे इतना थ्रिल भी नहीं चाहिए था जीवन में।
सेल्फ डिफेंस के नाम पर हमारे पास एक 15 फ़ीट का बाँस है। एक गद्दी कुत्ता 'जेन्गो' भी हमारे साथ रुका है जो बिलिंग के कुत्तों की गैंग का अल्फा डॉग है।
मेरे ट्रैक पार्टनर का कहना है कि लाइसेंसी एयरगन के साथ ट्रैकिंग करनी चाहिए। जबकि मेरा मानना है कि भालू से बचने के लिए बोफ़ोर्स तोप से नीचे कुछ भी सेफ नहीं है।
गनीमत रहती है कि भालू जंगल की ओर भाग जाता है और भालू से 'हैंड टू हैंड कॉम्बैट' की गम्भीर स्थिति टल जाती है।
हमें क्या पता था कि भालू रेंफोर्समेंट लाने गया है। रात को पूरे टब्बर समेत फैमिली फीस्ट पर आएगा।
डिस्कवरी चैनल पर भालू पर एक प्राइम टाइम शो देखा था। बता रहे थे भालू सर्दियों में 'हाइबरनेशन' मोड में चले जाते हैं। मतलब सर्दियों के तीन महीने गुफाओं में सोए रहते हैं। न कुछ खाते हैं न पीते हैं। सिर्फ सोते हैं। कुल मिला कर भालू मेरा 'स्पीरिट एनिमल' है।
पर अपेरेंट्ली धौलाधार के लो लिटरेसी वाले जाहिल भालू न तो डिस्कवरी देखते हैं न ही हाइबरनेट करते हैं।
निशांत भाई का रात्रिभोज में दाल चावल बनाने का विचार है। पर मेरी भूख प्यास तो कबकी मर चुकी है। अभी इस सदमे से संभलते नहीं हैं कि रात का अगला थ्रिल आ जाता है। एक चमकती आँखों वाला काला जीव हमारे कैंप की तरफ आ रहा है। मैं खतरा भाँप कर टेंट के पीछे छुप जाता हूँ। निशांत भाई टॉर्च लगा कर उसकी जात मज़हब जानने की कोशिश करते हैं। जेंगो उस जीव को देख रहा है, लेकिन भौंक नहीं रहा। क्या ख़ाक कुत्ता बनेगा रे तू बाबा, ऐसा मेरा जेंगो से कहना है। जान में जान आती है जब निशांत भाई उस काले जीव को कुत्ता घोषित करते हैं। शायद आसपास के किसी गांव से जेंगो का मित्र होगा। तभी जैंगो उस पर नहीं भौंका।
मुझे जब वी मेट फिलिम की गीत का डायलाग रह रह कर याद आ रहा है।
'प्लीज़ बाबा जी! अब इस रात में और कोई एक्साइटमेन्ट मत देना। बोरिंग बना दो इस रात को प्लीज़। अब और कोई थ्रिल नहीं चाहिए।'
अपन सूप के साथ ब्रेड खा कर अपने स्लीपिंग बैग में दुबक जाते हैं। पर नींद का कोई नामोनिशान नहीं है।
करीब एक घण्टे बाद कोई 100 मीटर दूर से भालू की गुर्राने की आवाज़ें आ रही हैं। जेंगो टेंट से सट कर बाहर आग के पास बैठा है। भालू की आवाज़ सुन कर मुस्तैदी से भौंक रहा है। भालुओं और जेंगो का स्टैंड ऑफ़ रात भर चालू रहता है।
अंदर मेरा डर के मारे बुरा हाल है। फोन पर सिग्नल नहीं है इसलिए आपातकालीन स्थिति में कोई मदद भी मुहैया नहीं हो पाएगी। कैम्पसाइट से मीलों दूर तक कोई इंसान या बस्ती नहीं है। मैं खुद को मानसिक रूप से भालू के साथ मुठभेड़ के लिए तैयार कर रहा हूँ। मरने से पहले एक नॉकआउट पंच ज़रूर रखूं साले के मुंह पर, ये मेरी अंतिम इच्छा है।
मैं फ़ोन निकाल कर अपने माता पिता व मित्रजनों के लिए एक आखिरी इमोशनल नोट टाइप करना शुरू करता हूँ क्योंकि मुझे उम्मीद है मैं सुबह तक जिन्दा नहीं बचूंगा। इसी उम्मीद में कि मेरा फ़ोन बरामद होने पर घर वाले इस नोट को पढ़ लेंगे।
उस रात अपन 2 बजे तक महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप किया, 1008 दफ़ा।
एक बार के लिए तो साक्षात यमराज भी नज़र आ गए थे। अपने भैंसे पर सवार। मेरा नाम पुकारते हुए।
अगर जेंगो नहीं होता तो यकीनन उस रात हमें भालू घसीट कर अपनी गुफ़ा में ले गया होता टेंट समेत।
डर के माहौल में कब नींद आ जाती है, पता नहीं चलता। सुबह बाहर झांक कर देखता हूँ तो पार्टनर सकुशल आग जला कर कॉफ़ी बना रहा है। पास में ही जेन्गो बैठा है। मतलब मैं ज़िंदा हूँ। मेरी ख़ुशी बॉर्डर फ़िलिम में रात भर पाकिस्तानियों से मुकाबला कर जंग जीतने जैसे फ़ौजियों जैसी है। काला कुत्ता अटेंडेंस लगा कर रात को फरार हो गया था। सुबह भी हाज़िरी के वक्त प्रकट हो जाता है। जल्द ही हम नाश्ता कर तैयार होते हैं और वहां से आगे की चढ़ाई शुरू करते हैं।
जेन्गो सुबह उल्टियां कर रहा है। इसने पिछले कल एक क्विन्टल बर्फ़ खाई थी। आज ब्रेड खाने लायक हालत भी नहीं बची है। सिर्फ पानी पी रहा है।
आखिरी चढ़ाई जिसकी ट्रेल जंगल से हो कर गुज़रती है, उसमें बर्फ़ पड़ी है। जेन्गो आखिर तक हमारा साथ निभाता है और चोटी तक साथ ही जाता है। समिट पर मनमोहक नज़ारे हमारा इंतज़ार कर रहे हैं। पिछली रात के ट्रॉमा से छुटकारा आखिरकार हमें समिट पर पहुँच कर ही मिलता है। इस पीक से धौलाधार के थामसर, वारु, जालसू, नोहरू, सरी जैसे अनेक पास दिखाई पड़ते हैं।
वापसी में क्यों न उसी नाले से उतरा जाए जिसे हम पिछले कल चढ़ने वाले थे। माने अब बिल्कुल भी मज़ा नहीं आ रहा। और निशान्त भाई को जीवन में मज़ा मांगता है। थ्रिल मांगता है। एडवेंचर मांगता है। कल वाले रास्ते से नहीं जाएंगे। नाले से हो कर उतरेंगे। ट्रेल ट्रेसिंग करते हैं।
भाई 100-200 ज़्यादा ले लो, बस भालू फ़्री ज़ोन तक पहुंचा दो, मेरा उनसे कहना है। नाले से होते हुए हम मुख्य सड़क पर पहुँचते हैं और बिलिंग पहुंच कर टैक्सी का प्रबंध करते हैं। बिलिंग में एक दुकानदार हमें कुत्ते का नाम बताता है। मेरा विश्वास है कि हो न हो जेन्गो देवी मां का वाहन ही था जो रात भर हमारी रक्षा में मुस्तैद रहा।
वापिस बैजनाथ पहुंचने पर एक और सरप्राइज मिलता है। एक 12-13 साल का बौद्ध भिक्षु पास की किसी मॉनेस्ट्री से भाग कर घर के पीछे छिपा है।
"तुम बीड़ मॉनेस्ट्री से हो या टाशीजोंग मॉनेस्ट्री से?", मासी उसे अंदर बैठा कर अमेरिकी पुलिस के स्टाइल में इंटेरोगेशन कर रहे हैं।
आप पुलिस को फ़ोन लगाओ, आगे की इंटेरोगेशन मैं संभालता हूँ। (उत्तर प्रदेश पुलिस के स्टाइल में):
मैं अगले विंटर ट्रेक में भालू से आत्मरक्षा के लिए सेल्फ प्रोपेल्ड होवित्जर आर्टिलरी तोप खरीदने का इच्छुक हूँ। सभी देशी विदेशी कम्पनियों के टेंडर आमंत्रित हैं।
नोट- भालू प्रोन एरिया में सावधानीपूर्वक कैम्प करें। क्या पता कब कोई मादा भालू आपको टेंट समेत घसीट कर ले जाए।
आज भी वो भालू की आवाज़ें मुझे सपनों में सुनाई देती हैं। ऐसा लगता है मानो वो भालू मुझसे कह रहा हो,
पता है यहां से बहुत दूर, सही और गलत के पार एक मैदान है (वही.. छिना पास वाला), मैं वहां मिलूंगा तुझे...
समिट का वीडियो यहाँ देख सकते हैं-
इस ट्रैक की कहानी इतनी खौफ़नाक है कि इस पर "I Shouldn't be alive" का एक दमदार एपिसोड बन सकता है। जैसे एक मीटिंग मोदी जी किए थे बेयर ग्रिल्स के साथ, वैसे ही एक हम भी किए थे 'बेयर' के साथ। फ़र्क सिर्फ़ इतना सा है कि हमारी वाली मीटिंग ज़्यादा 'वाइल्ड' थी।
इससे पहले मैं भालू से नहीं डरता था। भालू का खूब मज़ाक उड़ाता था। जो लोग मुझसे पूछते थे कि तुम्हें भालू से डर नहीं लगता उन्हें भालू से बचने की 'निन्जा टेक्नीक' सिखाया करता था। फिर एक दिन मैं इस ट्रैक पर गया। बस उस
दरअसल मैं कभी सर्दियों में ट्रैकिंग नहीं करता हूँ। अपनी रड़काटी की दुकान का शटर हर साल अक्टूबर में गिरा दिया करता हूँ। कम्फर्ट ज़ोन से बाहर जाने का डिस्कम्फर्ट मैं सर्दियों में उठाने के पक्ष में कभी नहीं रहा। विंटर ट्रैक मुझे दो वजह से करना पसन्द नहीं है- पहली हड्डियां गला देने वाली ठंड और दूसरा जंगली जानवर। सर्दियों में बर्फ गिरने पर जंगली जानवर नीचे उतर आते हैं, इसलिए उनसे एनकाउंटर का खतरा बढ़ जाता है। दूसरा मेरी बूढ़ी हड्डियों को बर्फ़ में चलने से सख़्त परहेज़ है।
हनुमानगढ़ पीक |
लेकिन इस साल (नवम्बर 2018 में) मामला संगीन है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लड़का लोग बर्नआउट का शिकार हो चुके हैं। तो अपने को एग्जाम के तुरन्त बाद एक 'रोमैंटिक वैकेशन' मांगता है।
मुझ जैसे पहाड़ प्रेमी के लिए आइडियल रोमैंटिक वैकेशन का सिर्फ एक ही मतलब हो सकता है- ट्रैक। पहाड़ों से मुझे ऐसी बेपनाह मोहब्बत है जैसी धड़कन फ़िलिम में सुनील शेट्टी को शिल्पा शेट्टी से थी। माने टोटल ज़हर।
पर जाएं तो जाएं कहाँ? इस 'मिलियन डॉलर क्वेश्चन' का उत्तर ढूंढना उतना ही मुश्किल है जितना कांग्रेस पार्टी में किसी गैर गांधी-वाड्रा का अध्यक्ष बनना। नवंबर खत्म होने को है और बर्फ़ 3000 मीटर तक उतर आई है। धौलाधार के सभी बड़े ट्रैक बर्फ़बारी के चलते बन्द हो चुके हैं। बड़ी दुविधा है।
तभी इस संगीन सीन में एंट्री होती है मेरे पुराने ट्रैक पार्टनर निशान्त भाई की। निशांत भाई को कांगड़ा धौलाधार में ट्रेल ट्रेसिंग और सोलो ट्रेकिंग में महारत हासिल है। वही हनुमानगढ़ पीक का नाम सुझाते हैं। मुझे कोई आपत्ति नहीं है। भला होगी भी क्यों? अपने को तो जीवन में थ्रिल चाहिए। इसलिए प्लानिंग कमीशन के दफ्तर से इस प्रस्ताव की फाइल झट से पास कर दी जाती है।
निशांत भाई और जेंगो |
हनुमानगढ़ चोटी (3070 मीटर) हिमाचल के विश्व प्रसिद्ध पैराग्लाइडिंग साइट बिलिंग के पास स्थित है। बिलिंग से ही इस चोटी का ट्रैक शुरू होता है जो छिना पास से हो कर गुज़रता है। छिना पास विश्वप्रसिद्ध टूरिस्ट स्पॉट बिलिंग को छोटा बंगाहल घाटी से जोड़ता है।
नवम्बर 18 को एग्जाम है। 19 सुबह की चम्बा- बैजनाथ बस है। 20 सुबह बीड़ से चढ़ाई शुरू होगी। मास्टर प्लान तैयार है!
19 की सुबह बस पकड़ने के साथ ही ऑपरेशन शुरू होता है। किराया बढ़ोतरी के बाद ये मेरी पहली बस यात्रा है। 2010 में चम्बा से कांगड़ा के 150 लगते थे, 2018 में 300 लगते हैं। क्या इन 8 सालों में लोगों की आय भी दोगुनी हुई होगी? ये जानने के लिए सरकार कमीशन बिठाएगी और जब तक कमीशन की रिपोर्ट आएगी तब तक किराया 600 का आंकड़ा पार कर गया होगा।
नोट: आज 2020 में प्रदेश सरकार एक बार फिर बस किराए में बढ़ोतरी कर चुकी है। अब प्रदेश में बस और हवाई जहाज़ के किराए में उन्नीस बीस का ही अंतर रह गया है।
एनीवे,
बस में चम्बा से बैजनाथ सिंगल पीस में पहुंचने वाली सवारियों को अड्डा इंचार्ज के दफ़्तर में ही अशोक चक्र से सम्मानित किए जाने का प्रावधान होना चाहिए, ऐसा मेरा सुझाव है।
हनुमानगढ़ |
20 नवम्बर: संघर्ष का दिन
20 की सुबह मौसम साफ़ है। मतलब बारिश से मैच में खलल पड़ने के आसार कम हैं। जहां एक तरफ वक़्त के पाबंद निशांत भाई हमेशा की तरह ठीक टाइम पर बैजनाथ बस अड्डे पहुंच कर मेरा इंतज़ार कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ मैं कॉलेज के दिनों से दूसरे लेक्चर में क्लास में पहुंचने की प्रथा का बखूबी अनुसरण करता हुआ एक घण्टा देरी से पहुंचता हूँ। वहां से बीड़ की बस पकड़ हम चल देते हैं।
क्योंकि ट्रेक छोटा है इसलिए ट्रेक पार्टनर का कहना है कि बीड़ से बिलिंग शॉर्टकट से पैदल चलेंगे। । चलो इसे लम्बा बनाते हैं। स्मॉल मिलाते जाओ, लार्ज बनाते जाओ। इस मोटो को मेरा पूर्ण समर्थन प्राप्त है। क्योंकि अपने को जीवन में थ्रिल चाहिए।
बिलिंग के लिए चढ़ाई शुरू करते- करते 11 बज चुके हैं। सुहानी धूप खिली है और जहां तक नज़र जा रही है वहां आसमान की ऊंचाईयों में उड़ते रंग बिरंगे ग्लाइडर्स दिखाई पड़ रहे हैं।
हैवी ड्यूटी |
इस यात्रा के लिए हमारा डिप्लॉयमेंट इतने शॉर्ट नोटिस पर हुआ है कि अपन लोग नमक, चीनी और कपूर की गोलियां तक लाना भूल गए हैं। खाना कैसे बनाएंगे, आग कैसे जलाएंगे सब सस्पेंस है।
लेकिन जीवन में अगर अनुराग कश्यप की फिल्मों के माफ़िक सस्पेंस और थ्रिल न हो तो वो भी कोई जीवन है भला?
बिलिंग में पी.बी. 12 नम्बर की गाड़ी से आए लड़का लोग के साथ घूमने आईं लड़कियां ठेके का पता पूछने के लिए लड़कों को उकसा रही हैं। बहकावे में आए लड़के अंग्रेजी शराब ढूंढ़ रहे हैं। पर अफ़सोस लडकों को ठेका नहीं मिल रहा और हमें कहीं नमक और चीनी नहीं मिल रही।
सबकी अपनी अपनी समस्याएं! सबकी अपनी अपनी दुविधाएं! जीना इसी का नाम है।
हम लोग एक ढाबे में लन्च करते हैं और उसी नेेेक दरियादिल ढाबे वालेे से थोड़ी चीनी और नमक ले कर आगे की चढ़ाई शुरू करते हैं। बिलिंग से एक लोकल कुत्ता हमारे पीछे- पीछे चलना शुरू कर देता है।
बिलिंग से राजगंधा तक मोटरेबल सड़क बनी है। इसी सड़क से हो कर हमें भी जाना है। लेकिन बरसात के बाद जैसी सड़क की हालत हो रखी है, सेना के टैंक का भी सड़क पार कर पाना मुश्किल है। कहीं मलबा पड़ा है, कहीं भूस्खलन हुआ है। कहीं गिरे हुए पेड़ों ने मार्ग अवरुद्ध किया है तो कहीं कहीं बीच की सड़क ही गायब है।
बीच कहीं किसी नाले से एक शॉर्टकट पीक के लिए जाता है। लेकिन सूरज ढलने को है और न तो ट्रेक पाटर्नर आष्वस्त है और न ही रिस्क उठाने की मेरी कोई इच्छा है। तो छिना जोत के आसपास ही कहीं कैंप करने का फैसला करते हैं।
कैंपसाइट |
20 नवम्बर 2018: कयामत की रात
ये तारीख मुझे ताउम्र याद रहेगी। क्योंकि ये मेरे जीवन की सबसे खौफनाक रात थी। सनसेट से पहले ही हम अपने आज के गंतव्य तक पहुंच गए हैं। चूँकि सर्दियों में अंधेरा जल्दी हो जाता है, इसलिए हम जल्दी से टेंट लगा कर लकड़ियां इक्कठी करते हैं और आग जलाने का कार्यक्रम शुरू करते हैं। तभी निशांत भाई को सामने भालू दिखाई देता है जो मेरे देखने से पहले ही जंगल की तरफ भाग जाता है।
अब हमारे कैंप में ठीक वैसा ही डर का माहौल है जैसा अशोक गहलोत कैंप में पिछले एक महीने से चल रिया था।
नवम्बर की सर्द अंधेरी रात, छिना पास (बिलिंग से राजगुंधा) के ऊपर का मैदान। सामने बियावान जंगल है जहां हमारे कैम्प से 150 मीटर दूर एक भालू मंडरा रहा है। अबे इतना थ्रिल भी नहीं चाहिए था जीवन में।
सेल्फ डिफेंस के नाम पर हमारे पास एक 15 फ़ीट का बाँस है। एक गद्दी कुत्ता 'जेन्गो' भी हमारे साथ रुका है जो बिलिंग के कुत्तों की गैंग का अल्फा डॉग है।
मेरे ट्रैक पार्टनर का कहना है कि लाइसेंसी एयरगन के साथ ट्रैकिंग करनी चाहिए। जबकि मेरा मानना है कि भालू से बचने के लिए बोफ़ोर्स तोप से नीचे कुछ भी सेफ नहीं है।
गनीमत रहती है कि भालू जंगल की ओर भाग जाता है और भालू से 'हैंड टू हैंड कॉम्बैट' की गम्भीर स्थिति टल जाती है।
हमें क्या पता था कि भालू रेंफोर्समेंट लाने गया है। रात को पूरे टब्बर समेत फैमिली फीस्ट पर आएगा।
माई फ्रेंड जेंगो |
डिस्कवरी चैनल पर भालू पर एक प्राइम टाइम शो देखा था। बता रहे थे भालू सर्दियों में 'हाइबरनेशन' मोड में चले जाते हैं। मतलब सर्दियों के तीन महीने गुफाओं में सोए रहते हैं। न कुछ खाते हैं न पीते हैं। सिर्फ सोते हैं। कुल मिला कर भालू मेरा 'स्पीरिट एनिमल' है।
पर अपेरेंट्ली धौलाधार के लो लिटरेसी वाले जाहिल भालू न तो डिस्कवरी देखते हैं न ही हाइबरनेट करते हैं।
निशांत भाई का रात्रिभोज में दाल चावल बनाने का विचार है। पर मेरी भूख प्यास तो कबकी मर चुकी है। अभी इस सदमे से संभलते नहीं हैं कि रात का अगला थ्रिल आ जाता है। एक चमकती आँखों वाला काला जीव हमारे कैंप की तरफ आ रहा है। मैं खतरा भाँप कर टेंट के पीछे छुप जाता हूँ। निशांत भाई टॉर्च लगा कर उसकी जात मज़हब जानने की कोशिश करते हैं। जेंगो उस जीव को देख रहा है, लेकिन भौंक नहीं रहा। क्या ख़ाक कुत्ता बनेगा रे तू बाबा, ऐसा मेरा जेंगो से कहना है। जान में जान आती है जब निशांत भाई उस काले जीव को कुत्ता घोषित करते हैं। शायद आसपास के किसी गांव से जेंगो का मित्र होगा। तभी जैंगो उस पर नहीं भौंका।
मुझे जब वी मेट फिलिम की गीत का डायलाग रह रह कर याद आ रहा है।
'प्लीज़ बाबा जी! अब इस रात में और कोई एक्साइटमेन्ट मत देना। बोरिंग बना दो इस रात को प्लीज़। अब और कोई थ्रिल नहीं चाहिए।'
अपन सूप के साथ ब्रेड खा कर अपने स्लीपिंग बैग में दुबक जाते हैं। पर नींद का कोई नामोनिशान नहीं है।
धौलाधार |
करीब एक घण्टे बाद कोई 100 मीटर दूर से भालू की गुर्राने की आवाज़ें आ रही हैं। जेंगो टेंट से सट कर बाहर आग के पास बैठा है। भालू की आवाज़ सुन कर मुस्तैदी से भौंक रहा है। भालुओं और जेंगो का स्टैंड ऑफ़ रात भर चालू रहता है।
अंदर मेरा डर के मारे बुरा हाल है। फोन पर सिग्नल नहीं है इसलिए आपातकालीन स्थिति में कोई मदद भी मुहैया नहीं हो पाएगी। कैम्पसाइट से मीलों दूर तक कोई इंसान या बस्ती नहीं है। मैं खुद को मानसिक रूप से भालू के साथ मुठभेड़ के लिए तैयार कर रहा हूँ। मरने से पहले एक नॉकआउट पंच ज़रूर रखूं साले के मुंह पर, ये मेरी अंतिम इच्छा है।
मैं फ़ोन निकाल कर अपने माता पिता व मित्रजनों के लिए एक आखिरी इमोशनल नोट टाइप करना शुरू करता हूँ क्योंकि मुझे उम्मीद है मैं सुबह तक जिन्दा नहीं बचूंगा। इसी उम्मीद में कि मेरा फ़ोन बरामद होने पर घर वाले इस नोट को पढ़ लेंगे।
उस रात अपन 2 बजे तक महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप किया, 1008 दफ़ा।
एक बार के लिए तो साक्षात यमराज भी नज़र आ गए थे। अपने भैंसे पर सवार। मेरा नाम पुकारते हुए।
अगर जेंगो नहीं होता तो यकीनन उस रात हमें भालू घसीट कर अपनी गुफ़ा में ले गया होता टेंट समेत।
डर के माहौल में कब नींद आ जाती है, पता नहीं चलता। सुबह बाहर झांक कर देखता हूँ तो पार्टनर सकुशल आग जला कर कॉफ़ी बना रहा है। पास में ही जेन्गो बैठा है। मतलब मैं ज़िंदा हूँ। मेरी ख़ुशी बॉर्डर फ़िलिम में रात भर पाकिस्तानियों से मुकाबला कर जंग जीतने जैसे फ़ौजियों जैसी है। काला कुत्ता अटेंडेंस लगा कर रात को फरार हो गया था। सुबह भी हाज़िरी के वक्त प्रकट हो जाता है। जल्द ही हम नाश्ता कर तैयार होते हैं और वहां से आगे की चढ़ाई शुरू करते हैं।
जेन्गो सुबह उल्टियां कर रहा है। इसने पिछले कल एक क्विन्टल बर्फ़ खाई थी। आज ब्रेड खाने लायक हालत भी नहीं बची है। सिर्फ पानी पी रहा है।
थामसर जोत |
आखिरी चढ़ाई |
आखिरी चढ़ाई जिसकी ट्रेल जंगल से हो कर गुज़रती है, उसमें बर्फ़ पड़ी है। जेन्गो आखिर तक हमारा साथ निभाता है और चोटी तक साथ ही जाता है। समिट पर मनमोहक नज़ारे हमारा इंतज़ार कर रहे हैं। पिछली रात के ट्रॉमा से छुटकारा आखिरकार हमें समिट पर पहुँच कर ही मिलता है। इस पीक से धौलाधार के थामसर, वारु, जालसू, नोहरू, सरी जैसे अनेक पास दिखाई पड़ते हैं।
वापसी में क्यों न उसी नाले से उतरा जाए जिसे हम पिछले कल चढ़ने वाले थे। माने अब बिल्कुल भी मज़ा नहीं आ रहा। और निशान्त भाई को जीवन में मज़ा मांगता है। थ्रिल मांगता है। एडवेंचर मांगता है। कल वाले रास्ते से नहीं जाएंगे। नाले से हो कर उतरेंगे। ट्रेल ट्रेसिंग करते हैं।
भाई 100-200 ज़्यादा ले लो, बस भालू फ़्री ज़ोन तक पहुंचा दो, मेरा उनसे कहना है। नाले से होते हुए हम मुख्य सड़क पर पहुँचते हैं और बिलिंग पहुंच कर टैक्सी का प्रबंध करते हैं। बिलिंग में एक दुकानदार हमें कुत्ते का नाम बताता है। मेरा विश्वास है कि हो न हो जेन्गो देवी मां का वाहन ही था जो रात भर हमारी रक्षा में मुस्तैद रहा।
समिट से दृश्य |
वापिस बैजनाथ पहुंचने पर एक और सरप्राइज मिलता है। एक 12-13 साल का बौद्ध भिक्षु पास की किसी मॉनेस्ट्री से भाग कर घर के पीछे छिपा है।
"तुम बीड़ मॉनेस्ट्री से हो या टाशीजोंग मॉनेस्ट्री से?", मासी उसे अंदर बैठा कर अमेरिकी पुलिस के स्टाइल में इंटेरोगेशन कर रहे हैं।
आप पुलिस को फ़ोन लगाओ, आगे की इंटेरोगेशन मैं संभालता हूँ। (उत्तर प्रदेश पुलिस के स्टाइल में):
"भागा काहे बे? क्या परेशानी है?"
"सुबह 4 बजे उठाते हैं।"
"इतनी ठंड में भी?"
"हाँ"
"फ़िर तो मैं भी भाग जाता। अच्छा किया भाई जो भाग गया। जा जी ले अपनी ज़िंदगी "
यात्रा सम्पन्न होती है..
मैं अगले विंटर ट्रेक में भालू से आत्मरक्षा के लिए सेल्फ प्रोपेल्ड होवित्जर आर्टिलरी तोप खरीदने का इच्छुक हूँ। सभी देशी विदेशी कम्पनियों के टेंडर आमंत्रित हैं।
नोट- भालू प्रोन एरिया में सावधानीपूर्वक कैम्प करें। क्या पता कब कोई मादा भालू आपको टेंट समेत घसीट कर ले जाए।
आज भी वो भालू की आवाज़ें मुझे सपनों में सुनाई देती हैं। ऐसा लगता है मानो वो भालू मुझसे कह रहा हो,
पता है यहां से बहुत दूर, सही और गलत के पार एक मैदान है (वही.. छिना पास वाला), मैं वहां मिलूंगा तुझे...
समिट का वीडियो यहाँ देख सकते हैं-
अगर लड़की होते तो भालू घसीटकर ले जाता और माँ बना देता, इसलिए तोप नहीं प्रिकॉशन पे फोकस करें जनाब, बाकी जो है वो है।
ReplyDeleteइस संभावना/कल्पना के लिए अकेले मयंक का जेंडर बदलने से काम नहीं चलना😄
Deleteअगर लड़की होते तो भालू घसीटकर ले जाता और माँ बना देता, इसलिए तोप नहीं प्रिकॉशन पे फोकस करें जनाब, बाकी जो है वो है।
ReplyDeleteअगर लड़की होते तो भालू घसीटकर ले जाता और माँ बना देता, इसलिए तोप नहीं प्रिकॉशन पे फोकस करें जनाब, बाकी जो है वो है।
ReplyDeleteHansi nahi ruk rahi thi padhtey time. 😄😄 Waiting for more.
ReplyDelete- Manav
Tarun goel ki maafik likha h
ReplyDeleteBhai koi bhi airpistol .177 bhi use Kar skte ho lisence kii need nii hoti sound cork laga ke self defense me use ho skti hai precihole sp60 accha option hai
ReplyDeleteशानदार, समसामयिक घटनाचक्र जैसे गेहलोत प्रकरण आदि चुटीले बन पड़े है. हमारा कैलाश यात्रा संस्मरण इस लिंक पर अवलोकन कर प्रोत्साहन स्वरूप दो शब्द लिखें
ReplyDeletehttps://chandersantani.blogspot.com/2020/08/blog-post.html?m=1
शानदार, समसामयिक घटनाचक्र जैसे गेहलोत प्रकरण आदि चुटीले बन पड़े है. हमारा कैलाश यात्रा संस्मरण इस लिंक पर अवलोकन कर प्रोत्साहन स्वरूप दो शब्द लिखें
ReplyDeletehttps://chandersantani.blogspot.com/2020/08/blog-post.html?m=1
Radkati की दूकान....सिंगल हड्डी में पहुचने पे अशोक चक्र से सम्मान planning कमीशन हवॉई जहाज बस के fare का अंतर ग़ज़ब भाई....100 200 ज्यादा ले ले भालू फ्री जोन में पंहुचा दे....बहुत अच्छा लिखते हो भाई मजा आ गया पढ़कर...
ReplyDeleteBhalu ri Maau ra Khasam
ReplyDeleteThank you for sharing this.
ReplyDeleteAre you looking forward for a place where you and your partner can spend an amazing time and make your honeymoon memorable? Well, Manali is truly the best destination top spend beautiful time with your partner.
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Good. Maza aa gya. Next trip. Par ho jaye. Kuch
ReplyDeleteThank You and I have a super give: How To Properly Renovate A House house renovations near me
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