Gaj Pass Trek | गज जोत यात्रा- मिलिए 16 साल के गद्दी तिलक राम से

हर साल की तरह जब इस साल जून में मुझे "माउंटेन्स आर कॉलिंग एंड आई मस्ट गो !" वाला कीड़ा काटना शुरू हुआ तो प्लान बना गज जोत की यात्रा करने का। लेकिन एक समस्या थी। मेरे सभी ट्रेक पार्टनर व्यस्त थे। टीम जालसू और टीम इंद्रहार को "कॉरपोरेट स्लेवरी" से छुट्टी नहीं मिली जबकि टीम पीर पंजाल ने खराब मौसम का हवाला दे के प्रोग्राम कैंसिल कर दिया।
लेकिन अब 32 नैशनल गेम्स तो मैंने भी खेले हैं। मैंने भी हार नहीं मानी। जैसे तैसे ट्रेक पार्टनर ढूंढ के यात्रा करने निकल पड़ा। यात्रा के दौरान एक बड़े रोचक वयक्तित्व वाले नवयुवक से मुलाकात हुई।



इनसे मिलिए। ये हैं तिलक राम जी। उम्र 16 साल। 8 भाइयों में सबसे छोटे हैं। घेरा के पास खड़ी बाही गांव के रहने वाले हैं। गज जोत यात्रा के दौरान बग्गा धार में इनसे मिलना हुआ। ये गद्दी समुदाय से सम्बंध रखते हैं। बात करने पर पता चला की शाहपुर के नज़दीक मनोह गांव में भी जमीन है। गर्मियों में बग्गा धार की तरफ कूच करते हैं। सर्दियों में वापिस मनोह चले जाते हैं।  


तिलकराम (दाएं)

आठवीं तक पढ़ने के बाद स्कूल छोड़ दिया है। कारण पूछने पर जवाब मिला

"पढ़ाई कर के क्या करूँगा? 200 भेड़ बकरियां हैं। उन्हें पालूंगा और व्यवसाय को और आगे बढ़ाऊंगा। पढ़ाई कर के होटल में नौकरी करनी पड़ेगी। गलती होने पर मैनेजर की गालियां तो पड़ेंगी ही और कहीं गुस्सैल कस्टमर हुआ सो मार अलग पड़ेगी।"

पढ़ाई सिर्फ आठवीं तक की है लेकिन मोबाइल टावर के दुष्प्रभाव से ले कर वानिकी और बागवानी तक की अच्छी समझ है। आये दिन जलविद्युत परियोजना के मुख्य प्रबंधक से लड़ाई होती है। बावजूद इसके उन्हीं से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि किसी दिन बग्गा तक बिजली की लाइन पहुंचा देंगे।



बग्गा धार
बग्गा धार के चरागाह 

समृद्ध परिवार से होने के बावजूद काफ़ी सादा रहन सहन है। पैसे का लालच दूर दूर तक दिखाई नहीं पड़ता। टेलीकॉम और पनबिजली कम्पनियों को ज़मीन किसी कीमत पर बेचने को तैयार नहीं हैं। उनके अफसरों को फूटी आंख नहीं सुहाते। दो टूक जवाब रखा है,

"न तो नौकरी की ज़रूरत है न ही पैसों की। हवा है पानी है इससे ज़्यादा और क्या चाहिए।"

                                 मराली माता का मंदिर
"अतिथि देवो भव" के सही मायने इनसे मुलाकात होने पर मालूम पड़ते हैं। हमसे जान पहचान बाद में हुई पहले अपने डेरे में रात्रिभोज का निमंत्रण दे दिया। जंगल में लकड़ी काटने से ले कर खाना बनाने तक हमारी सेवा में हर समय तत्पर रहे। जनाब की तरफ से चाय बनाने के लिये बकरी का दूध कंप्लीमेंट्री था।

तिलकराज जन्मजात शिव भक्त हैं। लम डल की यात्रा हर साल करते हैं। हमें सख्त हिदायत दी गई कि जोत के 100 मीटर पीछे ही जूते उतार लिए जायें और भगवती को फूल जरूर चढ़ाए जायें।

गज जोत की यात्रा करते समय समुद्रतल से लगभग 12,000 फीट की ऊंचाई पर मराली माता का मंदिर है। तिलकराम जी ने बताया कि कुगती में मराली माता के थान से ला कर उनके दादा जी के द्वारा किसी ज़माने में यहां भगवती को स्थापित किया गया है।

सुबह इनके पिताजी से मिलना हुआ। समय की पाबंदी के चलते ज़्यादा बात नहीं हो पाई। कुछ फ़ोटो खींचे हैं उनके व उनके सुपुत्र के साथ। डिमांड है कि कभी वो फ़ोटो छपा के पहुंचा दिये जायें।



तिलक राम के पिताजी (बाएं) और तिलकराम (मध्य)

उनसे विदा ले के हम आगे चल दिये। इस यात्रा में बदकिस्मत का साथ मिला जुला रहा। जहां बारिश और ओलावृष्टि आंखमिचौली खेलती रही वहीं बर्फ ज़्यादा होने की वजह से लम डल तक नहीं पहुंचा जा सका। लम डल जा के वापसी वाया मिन्कियानी जोत से करने की योजना थी जिसमें निराशा हाथ लगी। वापसी गज जोत से ही करनी पड़ी। वापसी में मैं मराली माता के मंदिर के पास 360 डिग्री फ्लिप खा के पैर तुड़वाने से बच गया और अगले दिन लंगड़ाते हुए 10 घण्टे खड़ी उतराई उतर के सकुशल घेरा पहुंचा।



गज जोत (समुद्रतल से 4400 मीटर )
बर्फ से जमी हुई लम डल

अगले साल फिर से लम डल की यात्रा करने का विचार  है। तिलकराम के परिवार तक फ़ोटो पहुंचाने के लिए खोज अभियान "मिशन-अतिथि देवो भव" अगले साल शुरू किया जाएगा। इच्छुक व्यक्ति सादर आमंत्रित हैं। खोज अभियान में अनुभव के आधार पर वरीयता दी जायेगी।


गज जोत (पीछे आर्थर्स रिज दिखाई दे रहा है)









Comments

  1. एक बात तो कहना चाहूंगा भाई कि आपके द्वारा लिखा गया लेख पढ़ना याने बहुत अच्छा लगना...माउंटेन्स are calling... कॉरपोरेट slavary वाह...ग़ज़ब व्यक्तित्व है तिलकराम...बकरी के दूध की चाय अकक....इतनी दूर से lamdal दिख रही है लेकिन आप जा नही पाए..भाई ग़ज़ब है गज जोत पार करना ही काफी challanging है...ग़ज़ब हो आप भाई...आपके लेख बहुत अच्छे होते है..

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  2. Keep on exploring mayank bhai...

    Cheers \m/

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